हनुमान के बिना रामायण की बात भी नहीं हो सकती रामायण काल में जन्मे पवनपुत्र हनुमान सैकड़ो सालों बाद महाभारत काल में भी जिंदा थे. इनके अस्तित्व को दुनिया त्रेता युग से जानती है. कहा जाता है कि महाभारत कि लडाई से पहले हनुमान जी पांडवों से मिलने आये थे. पोराणिक कथायों के अनुसार हनुमान जी को अमरता का वरदान प्राप्त था.
धार्मिक ग्रंथो कि माने तो हमे उनमे हिन्दू धर्म के सभी भगवानो के वापिस स्वर्ग में जाने का वर्णन मिलता है. लेकिन शेष रहते है हनुमान. जिनके मरने और वापिस स्वर्ग मैं जाने कि बात किसी भी ग्रन्थ मै नही मिलती. इस बात को दोहराने कि जरुरत नहीं है कि भगवान् हनुमान अमर थे. कुछ लोगों ने उनके दर्शन करने की बात भी कि है जिसमे तुलसीदास,ऋषि मद्द्वाचार्य, स्वामी रामदास और राघवेन्द्र जैसे लोग शामिल है. हनुमान जी को मानने वाले लोग कहते है कि हनुमान जी हर उस जगह पर मौजूद है जहाँ पर उनके भक्त उन्हें बुलाते है. उंहें याद करते है. और हनुमान जी हर उस जगह आ जाते है जहा उन्हें सचे दिल से पुकारा जाता है.

वहीँ दुनिया भर मै कई ऐसी जगह है जहाँ ऐसे पैरों के निशान बने है जिन्हें देख कर पता चलता है कि कोई ऐसा जीव मौजूद है जो आकार मै बेहद विशाल है. दुनिया भर के कईं अलग-अलग देशों में ऐसे निशान काफी संख्यां मे है. और वेज्ञानिको का ये दावा है कि ये निशान किसी ऐसे जीव के है जिसका शरीर काफी विशाल रहा होगा. अमेरिका में कई बार बहुत से लोगो ने विशालकाए जीव को घूमते देखा है ऐसा माना जाता है कि अमेरिका कि माया सभ्यता भी एक मंकी नाम भगवान् की पूजा करती थी. इसके इलावा चीन की दंत कथा में भी एक मंकी किंग का जिक्र मिलता है जो कि काफी हद तक हमारे हनुमान जी से मिलते जुलते है. ये सारे प्रमाण यही इशारा करते है कि आज भी हमारे हनुमान जी हमारे बीच हमारी धरती पर मौजूद है. इस बात कर प्रमाण हमे श्रीलंका मैं रह रहे एक आदिवासी कबीले से भी मिलता है.
कहते है जब भगवान् श्री राम ने अपना मानव शरीर छोड़ दिया था तो हनुमान अयोध्या छोड़ भगवान् राम कि याद में श्री लंका के जंगलों में पिदुरु पर्वत कि तरफ चले गये. जहाँ जंगली आदिवासीयों ने हनुमान जी कि बहुत सेवा की. जहाँ से वापस लौटते वक़्त उनकी भक्ति और सेवा से खुश होकर हनुमान जी ने इस कबीले के लोगों को ब्रह्म ज्ञान का बोध कराया. और उन्हें ये वचन दिया कि वो हर 41 साल के बाद उनके कवीले के साथ रहने आयेंगे और उनकी पीढ़ी को आत्मज्ञान देंगे. साथ ही हनुमान जी ने उन्हें एक मंत्र भी दिया. और मन्त्र को देते हुए कहा कि जब भी तुम मेरे दर्शन करना चाहो ये मंत्र पढ़ना मैं पलक झपकते ही आ जाऊंगा.
पर उन कबीले वालों ने हनुमान जी से पूछा कि यदि ये मंत्र किसी और हाथो में लग गया और वो इसका गलत इस्तिमाल करने लगा तब क्या? तो हनुमान जी न कहा कि ये मंत्र सिर्फ उस इंसान के लिए काम करेगा जिसको अपनी आत्मा का, मुझसे जुड़े रहने का एहसास होगा और जहाँ ये मंत्र पढ़ा जाएगा वहां से 980 KM तक ऐसा कोई भी इन्सान नहीं होना जो मुझमें सच्चा विशवास न रखता हो.

खैर मजेदार बात तो यह है कि ये जंगली आदिवासी समुदाय आज भी मौजूद है और श्री लंका के जंगलो मैं बाहरी समाज से एकदम दूर है. इनका रहन-सहन, पहनावा और भाषा भी प्रचलित भाषा से एकदम अलग है सेतु संगठन के अनुसार इस कबीलाई या आदिवासी समूह को मातंग लोगो का समाज कहा जाता है. इस समुदाय पर लोगों का धयान तब गया जब सेतु नामक संगठन ने इस आदिवासी समुदाय की कुछ अजीव गतिविधियों को नोटिस किया. इस संगठन ने उनको और अच्छी तरह से जानने के लिए जंगली जीवन शेली अपनाई और इनसे सम्पर्क साधना शुरू किया. सम्पर्क साधने के बाद उस समूह से उन्हें जो जानकारी मिली उसे जानकार वो हैरान रह गये. दरअसल ये अजीब गतिविधियाँ एक पूजा का हिस्सा थी, जो हर 41 साल में हनुमान जी के आने पर कि जाती थी और ये लोग इस अजीव गतिविधि को इसलिए करते थे क्यूंकि हनुमान जी उस समय उनके साथ थे. सिर्क कबीले वाले उनको देख सकते थे.
सेतु अनुसार इन अद्दिवासियों के मुखियां बाबा मातंग ने हनुमान जी के द्वारा उस प्रवास के दौरान किये गये हर कार्य और उनके द्वारा बोले गये हर एक शव्द के एक-एक मिनट का विवरण अपनी हनु पुस्तिका में किया . हनु पुस्तिका के अनुसार हनुमान जी २७ मई २०१४ को कबीले वालो को आत्म ज्ञान दे कर वहां से चले गये औरौर इसके बाद अब वह 41 साल वाद यानी २०५५ में आयेंगे. ये पुस्तिका अब सेतु एशिया नाम के एक धार्मिक संगठन के पास है. और वो लोग इस पुस्तक को पिदुरु पर्वत कि तलहटी में स्थित अपने आश्रम में समझ कर इसका आधुनिक भाषों में अनुवाद करने में जुटे हुए है. ताकि हनुमान जी के अमर होने के रहस्य को जाना जा सके.