पुराणों और शास्त्रों में भगवान् विष्णु का पुरे विश्व का पालनहार कहा गया है ! भगवान् विष्णु के और दो रूप है शिव और ब्रह्मा और इन तीनो को मिलाकर त्रिदेव की उत्पति हुयी ! जिन्हें हम ब्रह्मा, विष्णु महेश के नाम से जानते है ! 1/22/36 विष्णु पुराण के अनुसार भगवान् हरी विष्णु निराकार परब्रह्म जिनको वेदों में ईश्वर माना गया है ! सभी पुराणों में भागवत पुराण को सबसे अधिकमहत्व दिया गया है ! भागवत पुराण में भगवान् विष्णु का विस्तार से वर्णन किया गया है !
एक बार बैंकुंठ में भगवान श्री हरि विष्णु विश्राम कर रहे थे और देवी लक्ष्मी जी उनके पास बैठकर उनके पैर दबा रही थी ! तभी अचानक देवी लक्ष्मी को देखकर भगवान् हरि विष्णु जोर -जोर से हँसने लगे ! भगवान् हरि विष्णु के इस तह जोर-जो से हँसने के कारण देवी ने सोचा प्रभु हरि देवी की खूबसूरती का उपहास कर रहे है ! प्रभु के ऐसे व्यवहार को देख कर देवी क्रोधित होगयी और देवी ने भगवान हरि विष्णु को श्राप दे दिया ! की आपको आपके जिस मुख पर इनता अभिमान है उसे आपके शरीर से अलग हो जायेगा !
इसके कुछ समय पश्चात् भगवान हरि विष्णु एक युद्ध के दौरान बहुत ज्यादा थकने के कारण अपने धनुष पर सिर रख कर सो गये ! थकने के कारण वे बहुत गहरी नींद में सो गये ! देवताओ ने इस्सी दौरान एक विशेष यज्ञ का आयोजन किया ! ब्रह्मा ,विष्णु और महेश की आहुति के बिना कोई भी यज्ञ सफल नही होता !
भगवान विष्णु को जगाने के लिए सभी देवी -देवता परेशान होगये ! बहुत कोशिश करने उपरांत भी जब भगवान विष्णु को नींद से जगाने में कोई भी सफल न हो पाया ! तो देवताओ ने उनके धनुष की प्रत्यंचा को काट दिया ! जिस वजह से भगवान् विष्णु का सिर उनके धड से अलग हो गया ! इस दुर्घटना के कारण सारी सृष्टी और देवताओ में हाहाकार मच गया !
इसके बाद सभी देवी-देवता आदि शक्ति के पास गये और उनसे प्राथना कर भगवान विष्णु को पुन: जीवित करने का आग्रह करने लगे ! तब आदि शक्ति ने भगवान विष्णु के धड पर घोड़े का सिर लगाने का आदेश दिया ! आदि शक्ति का आदेश मान कर देवताओ ने विश्वकर्मा के साथ मिलकर घोड़े के सिर को विष्णु जी के धड पर लगा दिया ! इसके बाद भगवान विष्णु पुन: जीवित होगये ! इस प्रकार देवी लक्ष्मी का दिया गया श्राप भी पूरा होगया ! भगवान विष्णु ने इसी रूप में हयग्रीव नाम के राक्षस का भी वध किया !